शनिवार, 19 सितंबर 2009

सपने सुहाने



मैं अगर सावन होती तो

रेगिस्तान में बरसती

गर मैं होती आकाश तो

धरती पर छाया बनकर रहती

अगर मैं होती नदी तो

सुखे से जा मिलती

गर मैं होती पतंग तो

धागें से उड़ती

मैं अगर सावन होती तो

रेगिस्तान में बरसती



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