मैं अगर सावन होती तो
रेगिस्तान में बरसती
गर मैं होती आकाश तो
धरती पर छाया बनकर रहती
अगर मैं होती नदी तो
सुखे से जा मिलती
गर मैं होती पतंग तो
धागें से उड़ती
मैं अगर सावन होती तो
रेगिस्तान में बरसती
आज के इस युग में मुझे ये समझ में आया है, सोचूं जिसे अपना वो गैर नजर आया है, कर सकूं भरोसा ऐसा कोई मिल जाए, अपना न सही अपने जैसा मिल जाए, इस दिल में उम्मीदों की कमी नहीं है, पर मैं आँख बंद कर, कर लूं भरोसा ऐसा कोई मिला तो नहीं हैं,
lkein yahan sirf ek shabd ne sab badal diya..agar
जवाब देंहटाएंacha hai ...