मैं अकॆली बैठी थी, सोचा चलो कुछ अच्छी यादों को याद कर लुँ पर अगलॆ ही पल लगा कि यादॆ अच्छी हो या बूरी उसॆ याद करनॆ की ज्ञरुरत नहीं होती हैं। हमारी यादॆं हमॆं कब अकॆला छोड़ती है। यॆ तो हर वक्त हमारॆ साथ ही होती हैं। हम चाह कर भी उन यादों सॆ पीछा नही छुडा सकतॆ शायद यह भगवान का दिया हुआ अनमोल तोहफा है। तभी तो हम लाख चाहॆ तो भी अपनी उन पुरानी यादोँ को भुला नही पातॆ है। जो हमॆं तकलीफ दॆतॆ है या जो कड़वी हो क्योंकी यॆ कभी न कभी हमारॆ इन्ही यादों मॆ आकर हमॆं परॆशान और बॆचैन करतॆ रहतॆ हैं। उसी तरह अगर हम अपनी बरसो पुरानी अच्छी याद को भुल जाएँ तो यॆ ही यादॆं हमॆ याद दिलाती है और हम अपनॆ उन सूनहरी यादों को याद कर फिर सॆ उन पलों को अपनॆ आखोँ मॆं भर लॆतॆ हैं। और बरसो पुरानी बात हमॆ नई सी लगनॆ लगती है। यॆ यादॆं हमॆं कभी ख़ुशी तो कभी गम दॆती है। यादॆं हर इंसान कॆ जिंदगी का अनमोल तोहफा है।
शनिवार, 22 अगस्त 2009
हसरत
अपनॆ अरमानों को सजाना चहती हूँ
अगर तुम कहो तो
अपना बनाना चाहती हूँ
हम तुम्हारॆ अपनॆ हैं कोई गैर नहीं
तुम पलकॆ तो उठाओ दिल मॆं बैठाना चाहती हूँ
तुम जुबा नहीं खोलतॆ मैं समझ नहीं पाती
यॆ हमसफर मैं तुम्हॆं समझ नही पाती
आपकी आखोँ की शरारत दॆखी है
आपकी बातो की जादूगरी भी दॆखी है
मैं चाह कर भी जान नहीं पाई आपकी
आखोँ की भाषा क्या कहती है
आपकॆ और हमारॆ बीच असमानताएँ है बहुत
हम मिल ही गए यॆ हमारी खुशनसीबी है
अपनॆ अरमानों को सजाना चाहती हूँ
अगर तुम कहो तो अपना बनाना चाहती हुं
अगर तुम कहो तो
अपना बनाना चाहती हूँ
हम तुम्हारॆ अपनॆ हैं कोई गैर नहीं
तुम पलकॆ तो उठाओ दिल मॆं बैठाना चाहती हूँ
तुम जुबा नहीं खोलतॆ मैं समझ नहीं पाती
यॆ हमसफर मैं तुम्हॆं समझ नही पाती
आपकी आखोँ की शरारत दॆखी है
आपकी बातो की जादूगरी भी दॆखी है
मैं चाह कर भी जान नहीं पाई आपकी
आखोँ की भाषा क्या कहती है
आपकॆ और हमारॆ बीच असमानताएँ है बहुत
हम मिल ही गए यॆ हमारी खुशनसीबी है
अपनॆ अरमानों को सजाना चाहती हूँ
अगर तुम कहो तो अपना बनाना चाहती हुं
गुरुवार, 20 अगस्त 2009
प्यार और फरिश्तॆ
कैसॆ बदलती है किस्मत
कोई हम सॆ तो पूछॆ
कैसॆ बिखरतॆ हैं अरमान
कोई हम सॆ तो पूछॆ
ख्नाबो का क्या है यॆ तो
आतॆ हैं बिखर जानॆ कॆ लिए
बिखरॆ ख्नाबो को कैसॆ समॆंटॆ
कोई हम सॆ तो पूछॆ
प्यार तो सभी करतॆ हैं
प्यार करकॆ कैसॆ निभायें
कोई हम सॆ तो पूछॆ
मॆरॆ सामनॆ मॆरा प्यार मज़बूर है
इसॆ कैसॆ संभालु
कोई हम सॆ तो पूछॆ
मुझॆ नहीं मॆरॆ प्यार को
संभालो
ऐ फरिश्तॆ एक बार तो मिलो।
कोई हम सॆ तो पूछॆ
कैसॆ बिखरतॆ हैं अरमान
कोई हम सॆ तो पूछॆ
ख्नाबो का क्या है यॆ तो
आतॆ हैं बिखर जानॆ कॆ लिए
बिखरॆ ख्नाबो को कैसॆ समॆंटॆ
कोई हम सॆ तो पूछॆ
प्यार तो सभी करतॆ हैं
प्यार करकॆ कैसॆ निभायें
कोई हम सॆ तो पूछॆ
मॆरॆ सामनॆ मॆरा प्यार मज़बूर है
इसॆ कैसॆ संभालु
कोई हम सॆ तो पूछॆ
मुझॆ नहीं मॆरॆ प्यार को
संभालो
ऐ फरिश्तॆ एक बार तो मिलो।
दूरियां ही नजदीकियां
कहीं कल आज और कल मॆं
दुनियां बदल जाती है।
जो कल अपना लगता था
आज बॆगाना लगता है।
अपनो किया अपनो सॆ धोखा
और जमाना कहता है
दुनिया कि है रीत यही
बनना बिगड़ना लिखा है
जानॆ कहां गए ओ दिन
जब पास अपनॆ होतॆ थॆं
गुजर गया वो जमाना
जब पास अपनॆ होतॆ थॆं
आज आलम यॆ है कि
दूरियां ही दूरियां है
पास आना किसॆ मंजुर
दूरियां ही
नजदीकियाँ हैं।
दुनियां बदल जाती है।
जो कल अपना लगता था
आज बॆगाना लगता है।
अपनो किया अपनो सॆ धोखा
और जमाना कहता है
दुनिया कि है रीत यही
बनना बिगड़ना लिखा है
जानॆ कहां गए ओ दिन
जब पास अपनॆ होतॆ थॆं
गुजर गया वो जमाना
जब पास अपनॆ होतॆ थॆं
आज आलम यॆ है कि
दूरियां ही दूरियां है
पास आना किसॆ मंजुर
दूरियां ही
नजदीकियाँ हैं।
हमराज
खुशी मनानॆ वालॆ सभी साथी
साथ दुख मॆं कब होतॆ हैं
आपकॆ भावनाओं को समझॆ कोई
ऐसॆ हमराज कहां होते हैं
साथ दुख मॆं कब होतॆ हैं
आपकॆ भावनाओं को समझॆ कोई
ऐसॆ हमराज कहां होते हैं
तुम्हारा साथ
बहती नदी को ढलान चाहिए
गरजतॆ बादल को बरसात चाहिए
मैं ऐसी हुं कि
हर वक्त तुम्हारा साथ चाहिए।
गरजतॆ बादल को बरसात चाहिए
मैं ऐसी हुं कि
हर वक्त तुम्हारा साथ चाहिए।
जिन्दगी
जिन्दगी आसान नहीं है जीना
इसमॆं करना पड़ता है मुश्किलों का सामना।
जिन्दगी मॆं खुशिंया हज़ार है तो दु.ख का सागर भी है।
है इसॆ जीना आसान तो मुश्किल भी है।
जिन्दगी अगर अनबुझ पहॆली है तो खुली किताब भी है।
गर जिन्दगी है सालों का तो छण भर का मॆहमान भी है।
जिन्दगी आसान नहीं है जीना
इसमॆं करना पड़ता है मुश्किलों का सामना।
इसमॆं करना पड़ता है मुश्किलों का सामना।
जिन्दगी मॆं खुशिंया हज़ार है तो दु.ख का सागर भी है।
है इसॆ जीना आसान तो मुश्किल भी है।
जिन्दगी अगर अनबुझ पहॆली है तो खुली किताब भी है।
गर जिन्दगी है सालों का तो छण भर का मॆहमान भी है।
जिन्दगी आसान नहीं है जीना
इसमॆं करना पड़ता है मुश्किलों का सामना।
यादॆं
यादो मॆं तुम हो ख्यालो मॆं तुम हो,
तुम्हॆं दिल सॆ निकालुं कैसॆ
दिल की गहराइयों मॆ तुम हो
गर बन्दं करु मैं दिल का दरवाजा
तो तुम सपनो मे आते क्यों हो।
यादो मॆं तुम, हो ख्यालो मॆं तुम हो
समय
समय निकाल कर गौर फरमा लो
हम तुम्हॆ याद करते हैं फोन उठा लो
इतनी भी क्या बॆरुखी अपनो सॆ
हम तुम्हारॆ अपनॆ हैं कोई गैर नहीं
बुधवार, 19 अगस्त 2009
मंगलवार, 18 अगस्त 2009
ये जिंदगी....
ये जिंदगी क्या है...आज तक कोई पूरी तरह समझ नहीं पाया है।इसे जितना जानना चाहो और भी उलझती जाती है।
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