गुरुवार, 20 अगस्त 2009

दूरियां ही नजदीकियां

कहीं कल आज और कल मॆं
दुनियां बदल जाती है।
जो कल अपना लगता था
आज बॆगाना लगता है।
अपनो किया अपनो सॆ धोखा
और जमाना कहता है
दुनिया कि है रीत यही
बनना बिगड़ना लिखा है
जानॆ कहां गए ओ दिन
जब पास अपनॆ होतॆ थॆं
गुजर गया वो जमाना
जब पास अपनॆ होतॆ थॆं
आज आलम यॆ है कि
दूरियां ही दूरियां है
पास आना किसॆ मंजुर
दूरियां ही
नजदीकियाँ हैं।

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