शनिवार, 22 अगस्त 2009

हसरत







अपनॆ अरमानों को सजाना चहती हूँ
अगर तुम कहो तो
अपना बनाना चाहती हूँ
हम तुम्हारॆ अपनॆ हैं कोई गैर नहीं
तुम पलकॆ तो उठाओ दिल मॆं बैठाना चाहती हूँ
तुम जुबा नहीं खोलतॆ मैं समझ नहीं पाती
यॆ हमसफर मैं तुम्हॆं समझ नही पाती
आपकी आखोँ की शरारत दॆखी है
आपकी बातो की जादूगरी भी दॆखी है
मैं चाह कर भी जान नहीं पाई आपकी
आखोँ की भाषा क्या कहती है
आपकॆ और हमारॆ बीच असमानताएँ है बहुत
हम मिल ही गए यॆ हमारी खुशनसीबी है
अपनॆ अरमानों को सजाना चाहती हूँ
अगर तुम कहो तो अपना बनाना चाहती हुं

1 टिप्पणी:

  1. अपनॆ अरमानों को सजाना चाहती हूँ
    अगर तुम कहो तो अपना बनाना चाहती हूं
    शुभकामनाएँ हैं आपको आपकी मनोकामना पूरी हो।

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